tag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post4282676578959651471..comments2024-03-06T21:57:45.767+05:30Comments on एक भारतीय की डायरी: कुएं के हम तीस लाख कम तीस करोड़ मेढकअनिल रघुराजhttp://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-81863234353137814812008-03-06T00:39:00.000+05:302008-03-06T00:39:00.000+05:30अनिल जी - आपका आकलन और विवेचन हमेशा की तरह पैना, ...अनिल जी - आपका आकलन और विवेचन हमेशा की तरह पैना, साफ स्फटिक है - बेरोजगारी का दुःख उपभोग के उकसाने से दूना और निष्ठुर बनाने में अहम् है - पर रोज़गार एकदम से बढ़ जाए और सीधे गाँवों / कस्बों पहुँच जाए - ऐसा होना सर्वश्रेष्ठ है पर असंभव है - लेकिन देश को चलना कहीं से शुरू करना है - [अगर शहरी रोज़गार के और मौके और नहीं बनते तो क्या हालात बेहतर होंगें ? ] <BR/>हम माने न माने - विकास लोभ की रीढ़ पर टिकता है - और लोभ का अर्थशास्त्र रोज़गार के अवसरों को कम आय के स्थानों में ले जाता है (जो कम व्यय में ज़्यादा उत्पाद दे सकें) - कालांतर में उन स्थानों की आय बढ़ाता है - उदाहरण के तौर पर अगर मुम्बई में कॉल सेंटर मंहगे होंगे तो पुणे बनता है - फ़िर कोयम्बटूर, जयपुर वगैरह (जैसे न्यू यार्क, पोलैंड, आयरलैंड और फिलीपींस का काम दिल्ली मुम्बई, शंघाई आता है ) - ऐसा होता है और इसके होने की प्रक्रिया न तो पूरी निष्कपट/न्यायसंगत/ निष्पक्ष होती है न ही पूरा धोखा/ शोषण/ उत्पीणन [मैं इसके अच्छे बुरे होने का मूल्यांकन करने में असमर्थ हूँ] - आय बढ़ना विकास नहीं पर उसका एक हिस्सा है. <BR/>वैसे इसके शुरू न होने से पहले भी समाज की कबायली प्रतिक्रियाएं शुरू हैं - छीन के खाने, उड़ाने की दुकानें बहुत पहले से लग ही चुकी हैं - नौजवान नाम नए बदल रहे तमाम पंथों [ पार्टी, परिवार, बाहुबल/ रंगबाजी/ भाईगीरी, माओ/ मन्दिर/ मस्जिद/ नक्सल वादी, मनसे / धनसे इत्यादि ] की गिरफ्त में आ भी रहे हैं, असलहों / कट्टौं को अन्टौं में जमा भी रहे हैं - जो सफल होते हैं उनके हिस्से सडकों, रेलवे, बिजली पानी के टेंडर इत्यादि आते हैं बाकी पकड़ फिरौती से काम चलाते हैं - पिछले बीस सालों से बोट क्लब की रैलियों में शिरकत करनेवाले बाकायदा खर्चा पानी मांगते रहे हैं - <BR/>मैं भी दुआ करता हूँ की जो भी हो उसका बहना कुछ तेज़ हो - इसके पहले की हवाएँ तेज़ हों - सादर - मनीष<BR/>p.s. - sincere apologies if comment appears unsympathetic - it is not meant to beAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/08624620626295874696noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-51988760548002179512008-03-05T20:47:00.000+05:302008-03-05T20:47:00.000+05:30अनिल जी, "कस्बों और गांवों के करोड़ों नौजवान बेरोज...अनिल जी, "कस्बों और गांवों के करोड़ों नौजवान बेरोज़गारी से संत्रस्त होकर फिलहाल हाइबरनेशन में चले गए हैं।" से आपका क्या तात्पर्य है, समझ में नहीं आया। कृपया स्पष्ट करें।<BR/><BR/>जैसा कि आपने लेख में लिखा है कि (तीन लाख छोड़कर) यह तीस करोड़ लोग की दशा है। यह लोग धारा में बहने के लिए विवश हैं। इस माहौल में लोगों की मानसिकता में बदहवासी सी दिखाई देती है। "एक क्रेडिट कार्ड है, दूसरा भी बना लो, तीसरा भी फ्री में बन रहा है, बनवा लो। लोन लेकर शेयर में लगा दो।" ऐसा लगता है जैसे कोई सेल लगी है, जो पिछड़ गया वह घाटे में रहेगा। <BR/><BR/>ऐसे माहौल में सुकून से जीने का कोई मार्ग नज़र आता है (रामदेव के बताए प्राणायाम के अलावा)?आनंदhttps://www.blogger.com/profile/08860991601743144950noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-45605611954598610642008-03-05T20:01:00.000+05:302008-03-05T20:01:00.000+05:30YUVA KO ULATKAR DEKHEN...VAYU. HAVAA KA YAH JHONKA...YUVA KO ULATKAR DEKHEN...VAYU. HAVAA KA YAH JHONKA JAB <BR/>VEG-SANVEG SE LASH HOKER TUFAN KEE SHAKLA AKHTIYAAR KARTA HAI TAB<BR/>AILAANEZANG KUCH <BR/>IS TARAH HOTA HAI..<BR/><BR/>ZARRE ZARRE HON PATARIYAN<BR/>TUKDHE-TUKDHE TAAR HON.<BR/>SAARE DAFTAR PHOONK DO <BR/>LACHAAR AB SARKAAR HO.<BR/><BR/>AISE HALAAT KE NIDAAN KE LIYE MAIN SHIRJAN SHILPI KE MANTAVYA SE PURNATAH SAHNAT HUN.<BR/><BR/>AUR HAAN... MERE BLOG PAR AAPKE UDGAAR AUR VINAMRA ABHIVYAKTI KA SHUKRIYA. ANIL JI..YE AAPKA BADAPPAN HAI.Dr. Chandra Kumar Jainhttps://www.blogger.com/profile/02585134472703241090noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-83739202504381410142008-03-05T17:26:00.000+05:302008-03-05T17:26:00.000+05:30बेरोजगारी और गरीबी से त्रस्त तीस करोड़ लोगों की हत...बेरोजगारी और गरीबी से त्रस्त तीस करोड़ लोगों की हताशा और आक्रोश को क्रांति की कोई चिंगारी भयंकर ज्वालामुखी में तब्दील न कर दे, इसके लिए कारपोरेट, राजनीतिक दल, मीडिया और मनोरंजन उद्योग मिलकर सुनियोजित रूप से एक बड़े खेल में लगे हैं। <BR/><BR/>इन तीस करोड़ लोगों में अपने भीतर संघर्ष की प्रेरणा जगाना ही हमारा युगधर्म हो सकता है। इन तीस करोड़ लोगों को किसी ऐसे ईमानदार नेतृत्व की तलाश है, जो मन, वचन और कर्म से उनके लिए निर्णायक संघर्ष करने के लिए तैयार हो, जिसका त्याग-तप जनता में भरोसा पैदा करता हो, जिसमें परिस्थितियों के अनुरूप सूझबूझ भरी रणनीति बनाने की क्षमता हो, जो इन तीस करोड़ लोगों को एकजुट कर लड़ने के लिए तैयार कर सकने का माद्दा रखता हो।Srijan Shilpihttps://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-47913783452969544202008-03-05T15:54:00.000+05:302008-03-05T15:54:00.000+05:30ऎसे ही हालात थे जर्मनी के जब दुसरा विश्व युध हुया ...ऎसे ही हालात थे जर्मनी के जब दुसरा विश्व युध हुया था,ओर जो यहुदी गरीबॊ का खुन् चुसते थे, उन का हाल कया हुया दुनिया जानती हे,राज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-14477135579026605762008-03-05T15:39:00.000+05:302008-03-05T15:39:00.000+05:30अनिलजी,वाकई हम कूएं के मेंढक हैं..क्या हम यही सब द...अनिलजी,वाकई हम कूएं के मेंढक हैं..क्या हम यही सब देखते रहेंगे? वैसे आपने भी खूब लिखा है...अगर ये करोड़ों नौजवान किसानों के साथ हाथ मिलाकर सड़कों पर उतर गए तो हमारा सारा मायालोक टूट कर बिखरते देर नहीं लगेगी...पर ऐसा होता भी तो दिख नहीं रहा..VIMAL VERMAhttps://www.blogger.com/profile/13683741615028253101noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-72093930672228978652008-03-05T13:29:00.000+05:302008-03-05T13:29:00.000+05:30सरकारें यदि अब भी नहीं चेती तो नुकसान भयानक होगा। ...सरकारें यदि अब भी नहीं चेती तो नुकसान भयानक होगा। जिस दिन देश का युवा जाग गया, उस दिन एक नई क्रांति का जन्म होगाAshish Maharishihttps://www.blogger.com/profile/04428886830356538829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-53077372962732041582008-03-05T12:27:00.000+05:302008-03-05T12:27:00.000+05:30आपके व्यंग्य में धार है। यह सीधे चोट करता है और सो...आपके व्यंग्य में धार है। यह सीधे चोट करता है और सोचने-समझने का मौका नहीं देता।Dr. Zakir Ali Rajnishhttps://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.com