tag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post3590455138337546272..comments2024-03-06T21:57:45.767+05:30Comments on एक भारतीय की डायरी: गिनी कहती है, सदियों से वैसी ही है विषमताअनिल रघुराजhttp://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-41637825823865839292007-12-12T21:39:00.000+05:302007-12-12T21:39:00.000+05:30The more the difference, the more the same! वाह!The more the difference, the more the same! वाह!Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-36769267543286228742007-12-12T21:08:00.000+05:302007-12-12T21:08:00.000+05:30गिनी इंडेक्स के बारे में अच्छी जानकारी के लिए धन्य...गिनी इंडेक्स के बारे में अच्छी जानकारी के लिए धन्यवाद.<BR/>लेकिन आखिरी लाईन से सहमत होना थोड़ा मुश्किल है. क्रयशक्ति बढ़ी है या खर्च करने की मानसिकता में बदलाव आया है. छोटे-छोटे पैरामीटर सबसे सशक्त संकेत होते हैं लेकिन जिन संकेतों के भरोसे हम आंकलन करते हैं क्या उनके भरोसे आंकलन को ठीक माना जा सकता है? पूंजी का जैसा ध्रुवीकरण हो रहा है उससे तो गिनी इंडेक्स में उछाल आना चाहिए. आश्चर्य इस बात का कोई संकेत नहीं है जबकि भारत सरकार खुद कह रही है कि जीडीपी में कंपनियों का रेशियो तेजी से बढ़ रहा है. अगर जीडीपी में कंपनियों का रेशियो तेजी से बढ़ रहा है तो विषमता भी उसी तेजी से फैल रही होगी यह जाहिर सी बात है.Sanjay Tiwarihttps://www.blogger.com/profile/13133958816717392537noreply@blogger.com