tag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post2456218159134116924..comments2024-03-06T21:57:45.767+05:30Comments on एक भारतीय की डायरी: भाषा एक पहचान है और एक परदा भीअनिल रघुराजhttp://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-30751851567388681662007-08-14T16:33:00.000+05:302007-08-14T16:33:00.000+05:30बिल्कुल सही.बिल्कुल सही.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-68773127990069582352007-08-14T13:03:00.000+05:302007-08-14T13:03:00.000+05:30मैं आपकी बातों से सहमत हूँ कि भाषा प्रवाह है. लोगो...मैं आपकी बातों से सहमत हूँ कि भाषा प्रवाह है. लोगों की ज़ुबान से निकलेगी.<BR/>भाषा को सरकारी दफ्तरों में बैठकर कुछ दिनों में बनाया जाएगा तो वह ओढ़ी हुई भाषा बन जाती है जैसे लौहपथगामिनी. आजकल गूगल ने भी पचास-साठ के दशक के सरकारी अफसरों का -सा काम कर दिखाया है - ब्लोग पर कहते हैं अनूकुलित करें तो मुझे लगता है कि उठकर ए.सी. खोलना है.(वैसे गूगल वाले सुधर भी रहें हैं.)<BR/>तो मतलब यह कि ओढ़ी भाषा हास्यास्पद हो जाती है. स्वीकार्य नहीं. हिन्दी अपनी रफ्तार से मेरी-तेरी भाषा का दंभ छोड़कर बनेगी तो प्यारी भाषा बन सकती है. तब खुद-ब-खुद सर-आखों पर चढ़ जाएगी.DesignFlutehttps://www.blogger.com/profile/00283434937237912410noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-1867971954099967592007-08-14T12:02:00.000+05:302007-08-14T12:02:00.000+05:30हमारे बड़े भाषाशास्त्री प्रो० सुनीतिकुमार चटर्जी कह...हमारे बड़े भाषाशास्त्री प्रो० सुनीतिकुमार चटर्जी कहा करते थे कि "Puritanism in language is a Utopian concept." अतः भाषा के क्षेत्र में शुद्धतावाद एक खामखयाली है . भाषा-संस्कृति की सीमाएं नहीं हुआ करती .<BR/><BR/>बस ध्यान रखने की बात यह है कि सहज-स्वाभाविक रूप से जो भी हो वह ठीक है,पर इलेक्ट्रॉनिक मास मीडिया अपनी पहुंच का बेजा इस्तेमाल करके सांस्कृतिक प्रभुत्ववाद के तहत भाषा और जनरुचियों को विकृत न करे . इस पर नज़र रखना ज़रूरी है .Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-50965351887308146692007-08-14T11:03:00.000+05:302007-08-14T11:03:00.000+05:30इस तरह के अव्यक्त सोच से हिन्दी को नुक्सान ही होगा...इस तरह के अव्यक्त सोच से हिन्दी को नुक्सान ही होगा, फायदा नहीं, मेरे मित्र -- शास्त्री जे सी फिलिप<BR/><BR/>हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है<BR/>http://www.Sarathi.infoShastri JC Philiphttps://www.blogger.com/profile/00286463947468595377noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-73173854483961807992007-08-14T10:33:00.000+05:302007-08-14T10:33:00.000+05:30यह सच है कि अब तो सभी भाषाएँ पंचमेल खिचड़ी हैं। को...यह सच है कि अब तो सभी भाषाएँ पंचमेल खिचड़ी हैं। कोई भी अपने आप में शुद्ध नहीं है। न कोई शुद्ध(पूर्ण) अंग्रेजी लिख या समझ पाता है न ही कोई शुद्ध हिन्दी। देवनागरी पर तो कालक्रम में समाए विकारों के कारण तकनीकी दृष्टि से संसार की क्लिष्टतम लिपि (COMPLEX SCRIPT) का ठप्पा लग चुका है। <BR/><BR/>सच है कि भाषा कोई कारखाने में नहीं बनाई जाती, अपने आप बन जाती है।हरिरामhttps://www.blogger.com/profile/12475263434352801173noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-90691382319059211712007-08-14T09:56:00.000+05:302007-08-14T09:56:00.000+05:30बहुत सारे परस्पर असम्बद्ध मुद्दों का घालमेल कर दिय...बहुत सारे परस्पर असम्बद्ध मुद्दों का घालमेल कर दिया है आपने। घालमेल करने का यह फायदा होता है कि तर्क कुछ और दीजिये और निष्कर्ष कुछ और निकाल दीजिये।<BR/><BR/>यह लेख लिखते समय आपको न तो आधा, अंगूर आधा कद्दू वाला लतीफ़ा शायद याद नहीं था। शायद आप नही जानते कि ब्रिटिश काउन्सिल की स्थापना का क्या उद्देश्य था और क्या करती है। <BR/><BR/>"वैसे भी हिंदी एक ओढ़ी हुई भाषा है।" इसका मतलब क्या है? कौन सी भाषा आकाश से उतर कर आयी है? अंगरेजी भाषा का इतिहास क्या है? जर्मन, फ़्रेंच, इटैलियन, स्पैनिश आदि हिन्दी से अलग कैसे हैं?<BR/><BR/>गलती से आपने अंगरेजी और भ्रष्टाचार की तुलना कर दी है, पर बात काम की है - भ्रष्टाचार से भ्रष्टाचार करने वाले कुछ लोगों का फायदा होता है किन्तु पूरे समाज का बहुत बड़ा नुकसान होता है। यही बात अंगरेजी के साथ भी है। घोषित और अघोषित नीतियाँ कुछ ऐसी हैं कि अंगरेजी के प्रयोग में सिद्ध लोगों को व्यक्तिगत फायदा होता है किन्तु वह लाभ दूसरों का हक छीनकर हो रहा है (जी हां) और यदि पूरे भारतीय समाज की बात की जाय तो समाज को घाटा ही मिल रहा है। इसलिये अंगरेजी का विरोध होना जरूरी है ।अनुनाद सिंहhttps://www.blogger.com/profile/05634421007709892634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-84360633691375550602007-08-14T09:49:00.000+05:302007-08-14T09:49:00.000+05:30सही लिखासही लिखाPratyakshahttps://www.blogger.com/profile/10828701891865287201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-64607957025638282682007-08-14T09:44:00.000+05:302007-08-14T09:44:00.000+05:30बढ़िया लिखा.. मगर अजित जी जैसे और हम जैसे व्युत्पत्...बढ़िया लिखा.. <BR/>मगर अजित जी जैसे और हम जैसे व्युत्पत्ति ढ़ूढ़ने वालों पर नाराज़गी क्यों.. किसने कहा कि हम शुद्धतावादी हैं.. हम तो देखना चाहते हैं कि शब्द कहाँ कहाँ से गुज़र गया..स्रोत भी देख लेते हैं.. बल्कि इस से तो एक व्यापक दृष्टि विकसित हो सकती है..अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-19172079728073059382007-08-14T09:35:00.000+05:302007-08-14T09:35:00.000+05:30भाषाविद भी अपना काम करते रहें कोई हर्ज नहीं ! भाषा...भाषाविद भी अपना काम करते रहें कोई हर्ज नहीं ! भाषा के दस्तावेज़ीकरण के लिये वह भी ज़रूरी है.लेकिन यह कटु सत्य है कि किताबों से ज़्यादा भाषा को विस्तार देता है अपने परिवार,मोहल्ले,परिवेश और संगसाथ.मेरे घर में हमेशा से गंगा-जमनी तहज़ीब का माहौल रहा . दिवंगत दादा बचपने में जब किसी बात पर लाहौल विला क़ुव्वत कहते तो सोचता था ये क्या बला है.फ़िर पिता से पूछा ...और इस प्रकार कई शब्द मानस में महफ़ूज़ होते गए.बोलने से ही बढ़ती है भाषा और यदि कोई जानता है कि फ़लाँ शब्द ठीक नहीं बोला जा रहा तो यह एक नैतिकता है कि हम उसे ठीक करें...अभी कल ही मुझे कह रहा थी कि आपका बड़ा शुक्रिया कि आपने मुझे बड़ा ज़लील किया ..मैने तुरंत कहा भिया (हमारे इन्दौर में भैया को भिया कहते हैं) आप ठीक नहीं कह रहे यूँ कहिये शुक्रिया आपका आपने बड़ी इज़्ज़त दी.और हाँ ये विषय छेड़ कर आपने भी भाषा को संमृध्द ही किया.मैं एडवरटाज़िंग की दुनिया में छोटा सा खिलाड़ी हूं और यहाँ तो किताबी हिन्दी चल ही नहीं सकती ...बल्कि आजकल तो एक लाईन हिन्दी में तो दूसरी अंग्रेज़ी में तुक मिली हो तो ग्राहक काँपीराइटर को शाबासी देता है.बिला शक ! हिन्दुस्तानी(हिन्दी+उर्दू+मराठी+पंजाबी+राजस्थानी+भोजपुरी) ही है भारत की आत्मा.भारत की ज़ुबान....वंदेमातरम.sanjay patelhttps://www.blogger.com/profile/08020352083312851052noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-77677121056926574442007-08-14T09:07:00.000+05:302007-08-14T09:07:00.000+05:30अच्छा लिखा है और आख़िरी दो लाइन बहुत पसंद आयी।अच्छा लिखा है और आख़िरी दो लाइन बहुत पसंद आयी।mamtahttps://www.blogger.com/profile/05350694731690138562noreply@blogger.com