tag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post2336155845901651424..comments2024-03-06T21:57:45.767+05:30Comments on एक भारतीय की डायरी: धरती नहीं रोती, मगर कलपता है इंसानअनिल रघुराजhttp://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-50489803362083025622007-07-13T09:18:00.000+05:302007-07-13T09:18:00.000+05:30संजय जी, आपने मेरी वायवी बातों को शरीर दे दिया। बा...संजय जी, आपने मेरी वायवी बातों को शरीर दे दिया। बाबा के उदाहरण से तो मुझे सचमुच इस पहलू का नया डाइमेंशन मिल गया। <BR/>शुक्रियाअनिल रघुराजhttps://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-28018409406828334052007-07-12T23:00:00.000+05:302007-07-12T23:00:00.000+05:30मानव संसाधन को संसाधन मानना बुनियादी सोच है. और हम...मानव संसाधन को संसाधन मानना बुनियादी सोच है. और हमारी इस बुनियादी सोच में ही भ्रंस हो गया है. चार अक्षर पढ़ गये लोगों ने संसाधनों की कमी का ऐसा रोना रोया है कि हम समझते हैं लोग फालतू ही पैदा हो गये. संसाधन दो तरह के लोगों को चाहिए. एक वे लोग हैं जो भोग करना चाहते हैं, दूसरे वे लोग हैं जो उपयोग करना चाहते हैं. <BR/>जनसंख्या का रोना पहली जमात के लोग रो रहे हैं.<BR/><BR/>बाबा की बात बताते हैं. राजस्थान के अलवर के निवासी. ज्यादा उम्र नहीं है, कोई 55 साल के हैं. किसान हैं. अलवर की पुनर्जिवित नदी अरवरी के सांसद हैं. दिल्ली आये थे, एक सेमिनार में यह बताने कि पानी का क्या मोल है. उन्होंने एक बात कही थी. आदमी ज्यादा हो गये हैं क्यों रोते हो. बोलो न सबको कि हर आदमी एक पेड़ लगाए. जितने ज्यादा आदमी उतने ज्यादा पेड़.<BR/>जीवन के बारे, प्रकृति और मनुष्य के बारे में एक सोच यह भी है.Sanjay Tiwarihttps://www.blogger.com/profile/13133958816717392537noreply@blogger.com