tag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post1606439574808613355..comments2024-03-06T21:57:45.767+05:30Comments on एक भारतीय की डायरी: पकड़े जाने का डर ही हमें नैतिक बनाए रखता हैअनिल रघुराजhttp://www.blogger.com/profile/07237219200717715047noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-24803032859117208432008-01-29T19:44:00.000+05:302008-01-29T19:44:00.000+05:30भैया नैतिकता मुझे धर्म का सबसेट लगती है। मेरे ख्या...भैया नैतिकता मुझे धर्म का सबसेट लगती है। मेरे ख्याल से लोगों को (और स्वयम को) अपने धर्म की तलाश करनी चाहिये। अपने मूल भूत स्वभाव को चिन्हित करने पर आदमी ऊपर उठता है।Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-30724438462092763202008-01-29T19:03:00.000+05:302008-01-29T19:03:00.000+05:30'आत्मवत सर्वभूतेषु' का भाव जाने-अनजाने हमारी चेतना...'आत्मवत सर्वभूतेषु' का भाव जाने-अनजाने हमारी चेतना में हमेशा जीवंत रहता है, क्योंकि सभी जीवात्माओं के बीच यह अंतर्संबंध सबसे बड़ी वास्तविकता है। यही भाव हमारी भीतर empathy को जन्म देता है। <BR/><BR/>हां, यह सही है कि भय का अभाव नैतिकता बोध को शिथिल कर देता है। 'शैतान' को कोई भय नहीं होता, उसमें empathy नहीं होती, इसलिए उसमें नैतिकता का कोई बोध भी नहीं होता। <BR/><BR/><BR/>जीवात्माओं में स्वतंत्रता की चेतना या मुक्ति की अनुभूति नैतिकता बोध के बगैर नहीं आती। नैतिकता, स्वतंत्रता की पूर्व शर्त है। स्वतंत्र या मुक्त हो चुकी चेतना में नैतिक और अनैतिक के बीच भेद करने और नैतिकता बरतने का अंतर्प्रेरित दबाव क्रियाशील नहीं रहता। <BR/><BR/>संसार में किसी भी जीव के प्रति हिंसा, प्रतिकार, कृतज्ञता अथवा कृतघ्नता का भाव-भार हमारी चेतना की मुक्ति के मार्ग में बाधक बनकर उपस्थित हो जाता है। पूरी तरह समत्व और मित्रभाव से ओतप्रोत चेतना में ही मुक्ति का पलायन वेग आ पाता है। <BR/><BR/>मुक्ति की नैसर्गिक बेचैनी ही चेतना को अपने चित्त में चिपके सभी प्रकार के प्रतिगामी भाव-भार को उतार देने के लिए उकसाती है और यही प्रक्रिया व्यक्ति की सोच और उसके व्यवहार में नैतिकता के रूप में अभिव्यक्त होती है।Srijan Shilpihttps://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-62282439757805947692008-01-29T11:07:00.000+05:302008-01-29T11:07:00.000+05:30गम्भीर मसला उठाया है.गम्भीर मसला उठाया है.संजय बेंगाणीhttps://www.blogger.com/profile/07302297507492945366noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-21757440479910623772008-01-29T10:24:00.000+05:302008-01-29T10:24:00.000+05:30नैतिकता और अनैतिकता को सब अपने हिसाब से तय कर लेते...नैतिकता और अनैतिकता को सब अपने हिसाब से तय कर लेते है । और सही और गलत का नैतिकता और अनैतिकता से कितना संबंध है या है भी या नहीं कितने ही अनुतरित प्रश्न है ?Rachna Singhhttps://www.blogger.com/profile/15393385409836430390noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-968593042449838987.post-77454155317058289122008-01-29T10:05:00.000+05:302008-01-29T10:05:00.000+05:30नैतिक बोध की जड़ समाज में है या वह स्वयंभू है इस बह...नैतिक बोध की जड़ समाज में है या वह स्वयंभू है इस बहस से अलग मुझे कान्ट में जो बात बेहद दिलचस्प लगी वह उसकी स्वतंत्रता की अवधारणा- अपने नैतिक कर्तव्य का पालन करने के पहले यह शर्त है कि हम अपनी ज़रूरतों के ग़ुलाम न हों.. और अगर आदमी अपने फ़र्ज़ की आवाज़ सुन कर उस पर चल रहा है तो वो निश्चित ही आज़ाद है.. <BR/>पूरे लेख का निष्कर्ष यही था पर शायद यह बात नैतिकता जैसे भारी शब्द के बोझ में दब के रह गई..अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.com