Friday 18 June, 2010

व्योम भाई, आप हिंदुवादी मानव-विरोधी क्यों हो?

वाकई यह मेरे गले नहीं उतरता कि जितने भी ‘हिंदुवादी’ हैं वे दबे-कुचले गरीब लोगों के साथ खड़े होने से इतने बिदकते क्यों हैं? एक गरीब महिला जो शायद माओवादी न रही हो, उसकी लाश को अर्ध-सैनिक बल के दो जवान किसी ढोर-डांगर की तरह लटका कर ले जा रहे हैं। कहां तो घुघुती जी और शायदा की तरह इसके मानवीय पक्ष को महसूस करना चाहिए था और कहां हमारे ये तथाकथित ‘हिंदू’ लोग इसे देखकर फुंकारने लगे।

नहीं समझ में आता कि इसे देखकर सुरेश चिपलूनकर को क्यो कहना पड़ता है कि भारत के वीर सैनिकों को एक बार बांग्लादेश की सेना ने भी ऐसे ही लटकाकर भेजा था। संजय बेंगाणी अपना बेगानापन तोड़कर क्यों पूछ बैठते हैं कि माओवादी हमारे सैनिकों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं? कोई इसी बहाने मानवतावादियों को गद्दार बता बैठता है।

एक व्योम जी हैं। मुझ पर उनका स्नेह रहा है। लेकिन कल लगाई दो तस्वीरों से ऐसे विचलित हुए कि अपनी स्थिति साफ़ करने लगे कि “हम तो भारत की ही तरफ थे, हैं और रहेंगे। आप इस देश का नमक खाकर जारी रखें गद्दारी। आपकी मर्जी। हां ब्लॉग का नाम ‘एक नक्सलवादी की डायरी’ रखें तो ज्यादा सार्थक रहेगा। डर-डर कर क्या समर्थन करना।” बेचारे इतने तिममिलाए कि बोल बैठे कि कभी समय मिले तो 76 शहीदों की लाशों के चित्र देखना। उस समय तो आपकी जबान नहीं खुली। हम सब समझते हैं।

व्योम जी, बडी विनम्रता से कहना चाहता हूं कि आप कुछ नहीं समझते। महान व सुदीर्घ परंपरा वाले इस देश को नहीं समझते। असली राष्ट्रवाद और लोकतंत्र को नहीं समझते। किसी भयानक भ्रम के शिकार हैं आप और आप जैसे लोग। सत्ता के सामने दुम हिलाना और जनता के सामने दहाड़ लगाना आपका स्वभाव है। मुंह में राम, बगल में छूरी जैसी कहावत शायद इसी समुदाय के लिए बनाई गई थी। मुझे आप जैसे लोगों से देशभक्त या गद्दार होने का प्रमाणपत्र नहीं चाहिए। मेरी मां, मेरा घर-परिवार, मुझे नजदीक से जाननेवाले लोग और मैं खुद जानता हूं कि आज के इस दौर में अपने मुल्क और अवाम से मेरे जैसे निष्कपट व निःस्वार्थ प्रेम करनेवाले लोग गिने-चुने ही होंगे।

बंधुगण, मुझे जो काम करना है, मै करता रहूंगा। छात्र जीवन से कर रहा हूं और मरते दम तक करूंगा। लेकिन बुरा मत मानिएगा, मुझे आपका हिंदूवाद कतई समझ में नहीं आता। मैं भी एक धर्मनिष्ठ हिंदू परिवार से हूं। हालांकि मैं बाहरी पूजा-अर्चना या अनुष्ठानों में यकीन नहीं रखता, लेकिन गौतम बुद्ध और कबीर से लेकर विवेकानंद तक बराबर मुझे राह दिखाते रहते हैं। मेरा बस इतना कहना है कि इंसान और अवाम से प्रेम कीजिए, सारे धर्म अपने-आप सध जाएंगे। क्यों अंदर इतनी नफरत भरकर खुद का ही खून जलाते हैं?

Thursday 17 June, 2010

माओवादी इंसान नहीं, जानवर से भी बदतर!

मुझे अलग से कुछ नहीं कहना है। बस दो तस्वीरें लगा रहा हूं। पहली तस्वीर बुधवार की है जिसमें हमारे सिपाही पश्चिम बंगाल में इनकाउंटर के दौरान मारी गई एक महिला माओवादी को ढोकर ले जा रहे हैं। दूसरी तस्वीर देश की नहीं, विदेश की है जिसमें एक मरे हुए सुअर को दो लोग ढोकर ले जा रहे हैं।