Wednesday 25 March, 2009

बड़े किसानों को राहत, केंद्र सरकार ने तोड़ी आचार संहिता

न कोई विज्ञप्ति, न कोई सार्वजनिक घोषणा। रिजर्व बैंक ने चुपचाप एक अधिसूचना जारी कर यूपीए सरकार की सर्वाधिक लोकलुभावन किसानों की कर्जमाफी योजना में नई राहत दे दी। वह भी उन किसानों को जिनके पास दो हेक्टेयर या पांच एकड़ से ज्यादा जमीन है। कर्जमाफी योजना के तहत इन किसानों को बकाया कर्ज में एकल समायोजन (वन टाइम सेटलमेंट) के तहत 25 फीसदी छूट देने का प्रावधान है, बशर्ते ये लोग बाकी 75 फीसदी कर्ज तीन किश्तों में अदा कर देते हैं।

पांच एकड़ से ज्यादा जोत वाले इन किसानों को बकाया कर्ज की पहली किश्त 30 सितंबर 2008 तक, दूसरी किश्त 31 मार्च 2009 तक और तीसरी किश्त 30 जून 2009 तक चुकानी है। लेकिन रिजर्व बैंक ने दूसरी किश्त की अंतिम तिथि से आठ दिन पहले सोमवार को अधिसूचना जारी कर पहली किश्त को भी अदा करने की तिथि बढ़ाकर 31 मार्च 2009 कर दी है। दिलचस्प बात यह है कि रिजर्व बैंक के मुताबिक तिथि को आगे बढ़ाने का फैसला भारत सरकार का है। जाहिर है, इससे सीधे-सीधे देश के उन सारे बड़े किसानों को फायदा मिलेगा, जिन्होंने अभी तक पहली किश्त नहीं जमा की है।

2 मार्च को आम चुनावों की तिथि की घोषणा हो जाने के बाद देश में आचार संहिता लागू हो चुकी है। ऐसे में रिजर्व बैंक या किसी भी सरकारी संस्था की ऐसी घोषणा को आचार संहिता का उल्लंघन माना जाएगा जो आबादी के बड़े हिस्से को नया लाभ पहुंचाती हो। शिवसेना के राज्यसभा सांसद संजय राउत कहते हैं कि साढ़े पांच महीने से केंद्र सरकार सोई हुई थी क्या? चुनावों की तिथि घोषित हो जाने के बाद वित्त मंत्रालय की पहले पर की गई यह घोषणा सरासर आचार संहिता का उल्लंघन है। आदित्य बिड़ला समूह के प्रमुख अर्थशास्त्री अजित रानाडे कहते है कि वैसे तो रिजर्व बैंक एक स्वायत्त संस्था है। लेकिन चूंकि अधिसूचना में भारत सरकार के फैसले का जिक्र किया गया है, इसलिए यकीनन यह चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन है।

असल में केंद्र सरकार की कर्जमाफी योजना के तहत पांच एकड़ से कम जमीन वाले लघु व सीमांत किसानों को 31 मार्च 1997 के बाद 31 मार्च 2007 तक वितरित और 31 दिसंबर 2007 को बकाया व 29 फरवरी 2008 तक न चुकाए गए सारे बैंक कर्ज माफ कर दिए थे। लेकिन पांच एकड़ से ज्यादा जोतवाले किसानों को कर्ज में 25 फीसदी की राहत दी गई थी। इस कर्ज की रकम की व्याख्या ऐसी है कि इसकी सीमा में ऐसे किसानों के सारे कर्ज आ सकते हैं। वित्त मंत्रालय की अधिसूचना के मुताबिक इन किसानों के लिए कर्ज छूट की रकम या 20,000 रुपए में से जो भी ज्यादा होगा, उसका 25 फीसदी हिस्सा माफ कर दिया जाएगा। लेकिन यह माफी तब मिलेगी, जब ये किसान अपने हिस्से का 75 फीसदी कर्ज चुका देंगे। इसकी भरपाई बैंकों को केंद्र सरकार की तरफ से की जाएगी। दूसरे शब्दों में 30 जून 2009 तक बड़े किसानों द्वारा कर्ज की 75 फीसदी रकम दे दिए जाने के बाद उस कर्ज का बाकी 25 फीसदी हिस्सा केंद्र सरकार बैंकों को दे देगी।

रिजर्व बैंक ने सोमवार, 23 मार्च को जारी अधिसूचना में कहा है कि समयसीमा केवल 31 मार्च तक बकाया किश्तों के लिए बढ़ाई गई है और तीसरी व अतिम किश्त के लिए निर्धारित 30 जून 2009 की समयसीमा में कोई तब्दीली नहीं की गई है। तब तक अदायगी न होने पर बैंकों को ऐसे कर्ज को एनपीए में डाल देना होगा और उसके मुताबिक अपने खातों में प्रावधान करना होगा।

Thursday 12 March, 2009

लेफ्ट यूनियन सीटू की डाकिया बनी रिलायंस इंडस्ट्रीज

देश की सबसे बड़ी वामपंथी ट्रेड यूनियन और देश के सबसे बड़े पूंजीपति में जाहिरा तौर पर रिश्ता तो टकराव का ही होना चाहिए। लेकिन इन दिनों मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज सीपीएम से जुड़ी ट्रेड यूनियन सीटू की डाकिया बनी हुई है। वह सीटू की तरफ से प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को लिखी गई एक ऐसी चिट्ठी मीडिया में बंटवा रही है जिसमें छोटे भाई अनिल अंबानी की कंपनियों को निशाना बनाया गया है और मांग की गई है कि अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस कैपिटल को दिया गया कर्मचारी भविष्यनिधि कोष के शेयर बाजार में निवेश का काम उससे छीन लिया जाए।

सीटू के पत्र को मीडिया तक पहुंचाने का काम रिलायंस इंडस्ट्रीज के प्रचार विभाग द्वारा बड़े गोपनीय अंदाज में किया जा रहा है। उनके लोग यह पत्र फैक्स या ई-मेल के जरिए नहीं भेज रहे हैं, बल्कि बंद लिफाफा सीधे मीडियाकर्मियों तक पहुंचा रहे हैं। पूछने पर कहते हैं कि यह पत्र इतना संवेदनशील है कि हम फैक्स या ई-मेल से नहीं भेज सकते। लेकिन लिफाफे में बंद पत्र को पढऩे पर पता चलता है कि वह एक सामान्य पत्र है और उसमें ऐसी कोई सनसनी नहीं है।

सीटू के लेटरहेड पर उसके अध्यक्ष एम के पंधे द्वारा लिखा गया यह पत्र 2 मार्च 2009 का है। पत्र में प्रेस में छपी खबरों के आधार पर कहा गया है कि सत्यम और मेटास जैसा ही घोटाला अनिल अंबानी की कंपनियों - रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर, रिलायंस कम्युनिकेशंस और रिलायंस नेचुरल रिसोर्सेज में चल रहा है। इन कंपनियों ने विदेशी कॉरपोरेट उधार (ईसीबी) से जुटाई गई भारी-भरकम राशि का निवेश भारतीय म्यूचुअल फंडों और शेयर बाजार में किया है। ये कंपनियां अब घरेलू वित्तीय संस्थाओं और सरकारी बैंकों से कर्ज जुटाने में लगी हुई हैं। सीटू का आरोप है कि बैंकों व वित्तीय संस्थाओं से जुटाई गई रकम अनिल अंबानी की कंपनियां वाजिब मकसद के बजाय शेयर बाजार मे लगाएंगी और यह सारा ऋण एक दिन बैंकों के लिए एनपीए (गैर-निष्पादित आस्तियां) बन जाएगा।

रिलांयस इंडस्ट्रीज की तरफ से बंटवाए जा रहे इस पत्र के बाबत जब अनिल अंबानी समूह के लोगों से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि हमारे पास भी मुकेश अंबानी के खिलाफ 18,000 करोड़ रुपए के घोटाले की खबर है और हम भी इसे प्रचारित करवा सकते हैं। सीटू का यह पत्र काफी महत्वपूर्ण बन गया है क्योंकि इसी तरह का एक पत्र रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (आरपीआई) के अध्यक्ष व सांसद रामदास अठावले ने 18 अगस्त 2003 को सेबी के तत्कालीन चेयरमैन जी एन बाजपेयी को लिखा था, जिसमें सत्यम के प्रवर्तकों के बेनामी खातों और घोटालों की शिकायत की गई थी। सीबीआई इस समय सेबी से अठावले का यह पत्र हासिल करने में जुटी हुई है।